प्रत्यय- अर्थ,परिभाषा और प्रकार
हिंदी व्याकरण के अध्याय ‘प्रत्यय‘ ‘ को परिभाषा सहित और उसके भेद (प्रकार) को उदाहरण सहित समझने के लिए यहाँ पर प्रत्यय को विस्तार में समझाया गया है। हम आशा करते हैं की हिंदी व्याकरण का ‘प्रत्यय’ अध्याय आपको पूर्ण रूप से समझ आएगा। आपको ये अध्याय कैसा लगा, कमैंट्स में हमे जरूर बताएं। हिंदी पराग को अच्छा और उपयोगी बनाने के लिए आपकी प्रतिक्रिया हमें सहायक होगी।
अर्थ और परिभाषा
‘प्रत्यय’ शब्द दो शब्दों से बना है – प्रति + अय्। ‘प्रति का अर्थ ‘साथ में और ‘अय्’ का अर्थ ‘चलनेवाला’ होता है। इस प्रकार प्रत्यय की परिभाषा होती है- शब्दों के साथ बाद में चलने वाला अथवा लगने वाला प्रत्यय कहलाता है। “प्रतीयते विधीयते इति प्रत्ययः।” इसका अर्थ हुआ जिसका किसी शब्द अथवा धातु में विधान किया जाए, वह प्रत्यय’ कहलाता है। जो अक्षर अथवा शब्दांश होता है,उसे ‘प्रत्यय’ / सफिक्स (Suffix) कहते हैं। आदियोग को उपसर्ग, मध्ययोग को मध्यसर्ग अथवा विकरण और अन्तयोग को ‘प्रत्यय’ कहते हैं। भारतीय भाषाओं में मध्यसर्ग के उदाहरण भी पर्याप्त संख्या में हैं। देखना से दिखाना, दौड़ना से दौड़ाना, खेलना से खेलवाना और मरना से मरवाना आदि इसके उदाहरण हैं।
प्रत्यय जोड़कर निर्मित किये गये शब्दों की संख्या सबसे अधिक है। क्रिया-पदों में भी प्रत्यय जोड़कर भिन्न-भिन्न अर्थ प्रकट किये जाते हैं।
जैसे- जाता (जा + ता) , जाती (जा + ती) , जाते (जा + ते) , जाएगा (जा + एगा), जाएगी (जा + एगी)
सुविधा की दृष्टि से हिन्दी में बहुप्रचलित प्रत्ययों को तीन वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-
(क) संस्कृत-प्रत्यय (ख) हिन्दी-प्रत्यय (ग) विदेशज्-प्रत्यय।
हिन्दी-प्रत्यय हिन्दी के प्रत्ययों को भी संस्कृत के समान दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है :-
(क) ‘कृत’ प्रत्यय (ख) तद्धित’ प्रत्यय। संस्कृत में कृदन्त तथा तद्धितान्त शब्द ‘यौगिक शब्द है किन्तु हिन्दी में ये ‘रूढ़’ शब्द हो गये हैं। यहाँ तो मात्र उस शब्द को कृदन्त कह देने की परम्परा है, जिसमें किसी क्रिया अथवा धातु का अर्थ निकलता है।
‘कृत्’ प्रत्यय – कृत् प्रत्यय वे हैं, जो धातु के पीछे जुड़कर शब्द-निर्माण में सहायक होते हैं। जैसे—’भीरु’ में ‘ता’ प्रत्यय जोड़ने से भीरुता। हिन्दी के प्रमुख ‘कृत्’ प्रत्यय निम्नलिखित हैं :-
कृदन्त (कृत्) प्रत्यय
(१) अ- यह प्रत्यय भाववाचक संज्ञा’ बनाने के लिए प्रयुक्त होता है; –
जैसे-
लूट् + अ = लूट
पहुँच् + अ = पहुँच
खेल् + अ = खेल
दौडू+ अ = दौड़
हार् + अ = हार
जीत् + अ = जीत
रगडू + अ = रगड़
पटक् + अ = पटक
(२) अक्कड़- इस प्रत्यय से ‘कर्तृवाचक कृदन्त’ बनाया जाता है।
जैसे-
पी + अक्कड़ = पिअक्कड़
घूम् + अक्कड़ = घुमक्कड़
खेल् + अक्कड़ = खेलक्कड़
बूझ् + अक्कड़ = बुझक्क
(३) अन्त-
जैसे-
लडू + अन्त = लड़न्त
रट् + अन्त = रटन्त
लिख + अन्त = लिखन्त
पिट् + अन्त = पिटन्त
बढ़+ अन्त = बढ़न्त
पढ़ + अन्त = पढ़न्त
भिडू + अन्त = भिडन्त
पठ् + अन्त = पठन्त
4- अन- इसका प्रयोग भाववाचक संज्ञाओं का निर्माण करने के लिए किया जाता है। इसमें
र, तथा ऋ के स्थान पर ‘अन्’ अथवा ‘अण’ हो जाता है।
जैसे-
जल् + अन = जलन
खा+ अन = खान
दा+ अन = दान
दे + अन = देन (‘अ’ का लोप)
रक्ष् + अण = रक्षण
भृ+ अण = भरण
सह + अन = सहन
(५) अना- इस प्रत्यय का प्रयोग भाववाचक संज्ञाओं को बनाने के लिए किया जाता है।
जैसे-
जल् + अना = जलना
खा+ अना = खाना
दे + अना =देना
ले+अना = लेना
सह + अना = सहना
गढ़ + अना = गढ़ना
पढ् + अना = पढ़ना
लिख + अना = लिखना
दौडू + अना = दौड़ना
रो+ अना = रोना
(६) आ- इससे निम्नलिखित वर्ग के शब्द बनते हैं :-
(क) भाववाचक संज्ञाएँ
जैसे-
मेल् + आ = मेला
घेर + आ = घेरा
(ख) भूतकालिक कृदन्त
जैसे-
मार् + आ = मारा
पड् + आ = पड़ा
बैट् + आ = बैठा
रूट् + आ = रूठा
खडू+ आ = खड़ा
(ग) करणवाचक संज्ञाएँ
जैसे-
बाध् + आ = बाधा
झूल् + आ = झूला
झाडू + आ = झाड़ा
पूँज् + आ = पूँजा
सूज् + आ = सूजा
(७) आई- इससे भाववाचक शब्द बनते हैं।
जैसे-
खेल + आई = खेलाई
लिख् + आई = लिखाई
लड् + आई = लड़ाई
चढू + आई = चढ़ाई
खिल् + आई = खिलाई
पिट् + आई = पिटाई
(८) आऊ- इस प्रत्यय के द्वारा विशेषण तथा कर्तृवाचक संज्ञाएँ बनती हैं।
जैसे-
(क) विशेषण
जैसे-
टिक+ आऊ = टिकाऊ
दिख + आऊ = दिखाऊ
(ख) कर्तृवाचक संज्ञाएँ
जैसे-
उड् + आऊ= उड़ाऊ
खा+ आऊ = खाऊ
(९) आन- इसका प्रयोग भाववाचक संज्ञा बनाने के लिये किया जाता है।
जैसे-
उठ् + आन = उठान
थक् + आन = थकान
चल् + आन = चलान
मिल् + आन = मिलान
(१०) आव- इससे भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं।
जैसे-
घूम् + आव = घुमाव
कट् + आव = कटाव
पडू + आव = पड़ाव
लग् + आव = लगाव
जम् + आव = जमाव
रख् + आव = रखाव
(११) आवा- ‘आव’ का विकसित अथवा गुरु रूप है।
जैसे-
छल् + आवा = छलावा
बहक् + आवा = बहकावा
पहिर् + आवा = पहिरावा
भूल + आवा = भुलावा
(१२) आवना- इससे विशेषण पद निर्मित होते हैं।
जैसे-
सुह् + आवना = सुहावना
लुभ् + आवना = लुभावना
डर + आवना = डरावना
भूल + आवना = भुलावना
(१३) आक, आका, आकू- इस प्रत्यय से कर्तृवाचक संज्ञाएँ अथवा गुणवाचक विशेषण बनते हैं।
जैसे-
तैर् + आक = तैराक
तडू + आक = तड़ाक
लडू + आका = लड़ाका
लडू + आकू = लड़ाकू
उड़ + आकू = उड़ाकू
कूद + आकू = कूदाकू
(१४) आप, आपा- इनसे भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं।
जैसे-
मिल् + आप = मिलाप
पूज् + आपा = पुजापा
(१५) आवट- इससे भाववाचक संज्ञाएँ निष्पन्न होती हैं।
जैसे-
बन् + आवट = बनावट
लिख् + आवट = लिखावट
दिख् + आवट = दिखावट
मिल् + आवट = मिलावट
(१६) आहट- इस प्रत्यय के योग से भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं। ‘आहट’ अनुकरणात्मक शब्दों में जुड़ता है।
जैसे-
बौखल् + आहट = बौखलाहट
घबर् + आहट = घबराहट
झनझन् + आहट = झनझनाहट
लड़खडू + आहट = लड़खड़ाहट
सनसन् + आहट = सनसनाहट
(१७) आस- इससे भी भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं।
जैसे-
पी+ आस = प्यास
निकल + आस = निकास (‘ल’ का लोप)
मीठा + आस = मिठास
खट्टा+ आस = खटास (‘ट्’ का लोप)
(१८) इयल- इस प्रत्यय के योग से कर्तृवाचक कृदन्त बनते हैं।
जैसे-
मर् + इयल = मरियल
सडू = इयल = सड़ियल
अडू + इयल = अड़ियल
दद् + इयल = दढ़ियल
(१९) इया- इससे कर्तृवाचक संज्ञाएँ तथा गुणात्मक विशेषण पद बनते हैं।
जैसे-
जडू + इया = जड़िया
छल् + इया = छलिया
बढ् + इया = बढ़िया
घट् + इया = घटिया
(२०) ई- इस प्रत्यय के योग से क्रियाओं से भाववाचक और करणवाचक संज्ञाएँ बनती हैं।
१. भाववाचक–
घुड़क् + ई = घुड़की
धमक् + ई = धमकी
मर् + ई = मरी
गिर् + ई = गिरी
२. करणवाचक–
फाँस् + ई = फाँसी
लग् + ई = लगी
गाँस् + ई = गाँसी
खाँस् + ई = खाँसी
(२१) ऊ- इस प्रत्यय के द्वारा भी कर्तृवाचक और करणवाचक संज्ञाएँ बनती हैं।
जैसे-
मार् + ऊ = मारू
काट् + ऊ = काटू
बिगाडू + ऊ = बिगाडू
उतार् + ऊ = उतारू
(२२) एरा- इस प्रत्यय के योग से कर्तृवाचक और भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं।
जैसे-
१-कर्तृवाचक- लूट + एरा = लुटेरा
२- भाववाचक-बस् + एरा = बसेरा
(२३) ऐया- इस प्रत्यय के योग से कर्तृवाचक संज्ञाएँ बनती हैं।
जैसे-
हँस् + ऐया = हँसैया
रख् + ऐया = रखैया
बच् + ऐया = बचैया
रो+ ऐया = रोवैया
(२४) ऐत- इस प्रत्यय के योग से कर्तृवाचक संज्ञाएँ बनती हैं।
जैसे-
लडू + ऐत = लडैत
बिगडू + ऐत बिगडैत
(२५) ओड़, ओड़ा- इस प्रत्यय के योग से कर्तृवाचक संज्ञाएँ बनती हैं।
जैसे-
भाग् + ओड़ = भगोड़
भाग् + ओड़ा = भगोड़ा
हँस् + ओड़ = हँसोड़
हँस् + ओड़ा = हँसोड़ा
(२६) औता, औती- इस प्रत्यय से भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं।
जैसे-
चुन् + औती = चुनौती
समझ् + औता = समझौता
फिर + औती = फिरौती
मन् + औती = मनौती
(२७) ओना, औनी आवनी- इनके योग से विभिन्न प्रकार के कृदन्त रूप बनते हैं।
जैसे- डर् + आवनी = डरावनी
खेल + औना = खेलौना
मिच् + औनी = मिचौनी (आँखमिचौनी)
डर् + औनी = डरौनी
(२८) का- इस प्रत्यय के योग से विभिन्न पद बनते हैं।
जैसे- छील् + का = छिलका
फूल + का = फुलका
(२९) वाला- इस प्रत्यय के योग से कर्तृवाचक विशेषण और संज्ञाएँ बनती हैं।
जैसे-जानेवाला, सोनेवाला, खानेवाला आदि।
‘तद्धित’ प्रत्यय
हिन्दी के तद्भव-शब्दों में तद्धित प्रत्यय जोड़कर संज्ञा और विशेषण शब्द बनाये जाते हैं।
हिन्दी के प्रमुख तद्धित प्रत्यय निम्नलिखित हैं :-
(१) आ- इसके योग से संज्ञा से विशेषण और साधारण संज्ञा से भाववाचक संज्ञाएँ
बनती हैं।
जैसे-
संज्ञा विशेषण
भूख भूखा
प्यास प्यासा
बोझ बोझा
खटक खटका
(२) आई- इस प्रत्यय के योग से विशेषणों और संज्ञाओं से भाववाचक संज्ञाएँ
बनती हैं।
जैसे-
विदा विदाई
भला भलाई
बुरा बुराई
अच्छा अच्छाई
ठाकुर ठकुराई
अधम अधमाई
(३) आन- इससे भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं।
जैसे-
लम्बा लम्बान
ऊँचा ऊँचान
चौड़ा चौड़ान
नीचा नीचान
(४) आना- इस प्रत्ययानुसार स्थानवाचक संज्ञाएँ बनती हैं।
जैसे-
हिन्दू हिन्दुआना
राजपूत राजपुताना
तेलंग तेलंगाना
बघेल बघेलाना
(५) इन- इस प्रत्यय को जोड़कर शब्दों के स्त्रीलिंग बनाए जाते हैं।
जैसे-
लोहार लुहारिन
नाग नागिन
पड़ोसी पड़ोसिन
मालिक मालकिन
(६) आर- इस प्रत्यय के योग से कर्तृवाचक संज्ञाएँ बनती हैं।
जैसे-
कुम्भ कुम्भार
सोना सोनार
लोहा लोहार
चर्म चर्मकार
कभी-कभी इस प्रत्यय से विशेषण भी बनते हैं।
जैसे-
दूध दुधार
गाँव गवार
(७) आरा, आरी- इन प्रत्ययों का प्रयोग भी ‘आर’ के समान ही होता है।
जैसे-
हत्या हत्यारा
घास घसियारा
भीख भिखारी
पूजा पुजारी
(८) आल, आला- इन प्रत्ययों से संज्ञाएँ बनती हैं।
जैसे-
ससुर ससुराल
दया दयाला
शिव शिवाला
पानी पनाल, पनाला
(९) आवट- इसके योग से भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं।
जैसे-
नीम निमावट
आम अमावट
(१०) आस- इस प्रत्यय के जुड़ने से विशेषण और भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं।
जैसे-
मीठा मिठास
खट्टा खटास
नींद निंदास
ऊँघ ऊँघास
(११) आहट- इस प्रत्यय के योग से भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं।
जैसे-
चिकना चिकनाहट
कडुआ कडुआहट
गरम गरमाहट
मुस्कान मुस्कुराहट
(१२) इया- इस प्रत्यय के योग से कर्तृवाचक और स्थानवाचक संज्ञाएँ बनती हैं।
जैसे-
दुःख दुखिया
आढ़त अढ़तिया
बाग़ बगिया
ओसोम ओसोमिया
भोजपुर भोजपुरिया
(१३) ई- इससे भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं।
जैसे-
खेत खेती
सुस्त सुस्ती
सावधान सावधानी
चौकीदार चौकीदारी
(१४) ईला- इस प्रत्यय के प्रयोग से विशेषण बनते हैं।
जैसे-
रंग रंगीला
रेत रेतीला
पत्थर पथरीला
ज़हर ज़हरीला
सुर सुरीला
(१५) ‘ऊ’- इससे विशेषण शब्द बनते हैं।
जैसे-
गँवार गँवारू
बाज़ार बाज़ारू
गरज गरजू
टहल टहलू
(१६) एरा- इस प्रत्यय द्वारा विभिन्न शब्द बनते हैं।
जैसे-
मामा ममेरा
चाचा चचेरा
साँप सपेरा
अन्ध अँधेरा
घना घनेरा
मौसा मौसेरा
(१७) एड़ी- इस प्रत्यय से कर्तृवाचक संज्ञाएँ बनती हैं।
जैसे-
भाँग भँगेडी
गाँजा गँजेड़ी
(१८) औती- इससे भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं।
जैसे-
काठ कठौती
मान मनौती
बाप बपौती
चूना चुनौती
(१९) ओला- इससे लघुतावाचक शब्दों का निर्माण होता है।
जैसे-
साँप सँपोला
खाट खटोला
(२०) क- इसके विभिन्न प्रयोग हैं।
जैसे-
ढोल ढोलक
पंच पंचक
सप्त सप्तक
बाल बालक
(२१) ऐल- इस प्रत्यय से गुणवाचक विशेषण बनते हैं।
जैसे-
झगड़ा झगडैल
तोंद तोदैल
दाँत दंतैल
रोब रौबेल
(२२) त- इस प्रत्यय के योग से भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं।
जैसे-
संग संगत
चाह चाहत
पंग पंगत
(२३) पन- इस प्रत्यय के योग से भाववाचक संज्ञाएँ निष्पन्न होती हैं।
जैसे-
मैला मैलापन
लड़का लड़कपन
बच्चा बचपन
ढीला ढीलापन
छोटा छोटापन
ओछा ओछापन
अक्खड़ अक्खड़पन
बड़ा बड़प्पन
(२४) पा- यह ‘पन’ का ही दूसरा रूप है।
जैसे-
बहन बहनापा
बूढ़ा बुढ़ापा
मोटा मोटापा
(२५) हारा- इसके योग से कर्तृवाचक संज्ञाएँ बनती हैं।
जैसे-
लकड़ी लकड़हारा
पानी पनिहारा
घास घसिहारा
(२६) स- इसके योग से भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं।
जैसे-
उष्मा तम
उमस तमस
(२७) ता- इसके योग से भाववाचक संज्ञाएँ निष्पन्न होती हैं।
जैसे-
मधुर मधुरता
कवि कविता
मित्र मित्रता
सुन्दर सुन्दरता
मानव मानवता
मनुज मनुजता
(२८) हरा- इसके योग से विशेषण शब्द निष्पन्न होते हैं।
जैसे-
तीन तिहरा
सोना सुनहरा
रूप रूपहरा
(२९) वाला- इसके योग से कर्तृवाचक संज्ञाएँ बनती हैं।
जैसे-
टोपी टोपीवाला
धन धनवाला
पानी पानीवाला
रूप रूपवाला
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